के.एल. दहिया
पशु चिकित्सक, पशुपालन एवं डेयरी विभाग, कुरूक्षेत्र, हरियाणा।
पशुपालन कृषि का एक अभिन्न अंग है जिसे पशुपालकों की आमदनी बढ़ाने का सबसे आशाजनक क्षेत्र माना जाता है। माँस, अण्डे, दूध, फर, चमड़ा और ऊन जैसे श्रम और वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए पशुधन को कृषि क्षेत्र के अंतर्गत पाले गये पालतु पशुओं के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुधन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लगभग 20.5 मिलियन लोग अपनी आजीविका के लिए पशुधन पर निर्भर हैं। छोटे ग्रामीण परिवारों की आय में पशुधन का योगदान 16 प्रतिशत है, जबकि सभी ग्रामीण परिवारों का औसत लगभग 14 प्रतिशत है। पशुधन ग्रामीण समुदाय के दो-तिहाई लोगों को आजीविका प्रदान करता है। यह भारत में लगभग 8.8 प्रतिशत आबादी को रोजगार भी प्रदान करता है। हालांकि, भारत में विशाल पशुधन संसाधन हैं फिर भी प्रति पशु दुग्ध उत्पादन और प्रति व्यक्ति दुग्ध उपलब्धता कम है। प्रति पशु औसत दुग्ध उत्पादन को विश्व स्तर पर लाने के लिए पशुपालन क्षेत्र में आने वाली प्रमुख समस्याओं का समाधान करना अति आवश्यक है। डेयरी व्यवसाय में उचित आहारीय प्रबंधन की सहायता से बहुत सी समस्याओं का समाधान आसान हो जाता है। यही, इस पुस्तिका का उद्देश्य है।
उचित-लाभ-उपार्जन-के-लिए-डेयरी-पशुओं-का-आहार-प्रबंधन