के.एल. दहिया, पशु चिकित्सक
पशुपालन एवं डेयरी विभाग, कुरूक्षेत्र – हरियाणा
आदिकाल से ही मनुष्यों और जीव-जंतुओं में संक्रामक रोग रहे हैं जिनका विभिन्न प्रकार की चिकित्सा पद्दतियों जैसे कि लोक/परंपरागत चिकित्सा (एथनोमेडिसिन), संहिताबद्ध शास्त्रीय (आयुर्वेद, सिद्धा, यूनानी और तिब्बती) चिकित्सा, संबद्ध प्रणालियाँ (योग और प्राकृतिक चिकित्सा) और पश्चिमी मूल की प्रणालियाँ (होम्योपैथी, पश्चिमी बायोमेडिसिन अर्थात एलोपैथी) के माध्यम से उपचार किया जाता रहा है। इन सभी चिकित्सा पद्दतियों में लोक चिकित्सा अर्थात एथनोमेडिसिन जिसे आमतौर पर परंपरागत चिकित्सा कहा जाता है, आदिकाल से प्रचलित है। इस चिकित्सा को जीवित रखने में परंपरागत चिकित्सकों की अहम् भूमिका रही है। पशुओं में अपनायी गई एथनोमेडिसिन को एथनोवेटरीनरी मेडिसिन अर्थात परंपरागत पशु चिकित्सा कहते हैं।
Hindi-Application-of-Ethnoveterinary-Medicine-in-Dairy-Animals