डा. के.एल. दहिया*
*पशु चिकित्सक, राजकीय पशु हस्पताल, हमीदपुर (कुरूक्षेत्र)
पशुपालन एवं डेयरी विभाग, हरियाणा
ग्रामीण आँचल में पशुओं को चारा खिलाने के लिए बहुत से पशुपालकों खासतौर से सीमान्त एवं भूमिहीन ग्रामीणों को खरपतवार रूपी चारा एकत्रित करने से दिन की शुरूआत होती है। गर्मियों के मौसम में ये परिवार पशुओं के लिए चारा एकत्रित करने के लिए सुबह-सुबह ही निकल पड़ते हैं। इस चारे का मुख्य घटक खेतों एवं उनकी मेढ़ों पर उगने वाले खरपतवार होते हैं और दूधारू पशु इनको खाकर पशुपालकों के लिए दूध देते हैं। इन खरपतवारों में ऐसे बहुत से पौधे होते हैं जिनमें आवश्यक तत्व होने के साथ-साथ औषधीय गुण भी होते हैं जिनसे पशु का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। प्राकृतिक तौर पर खेतों से उपलब्ध चारे के रूप में काटे गये पौधे स्वतः ही दोबारा पनपने में आत्मनिर्भर होते हैं और इतना ही नहीं पशुपालकों द्वारा बहुत से पौधे भी बीज के लिए छोड़ दिये जाते हैं ताकि यही पौधे बीजों से समयानुसार दोबारा से उग सकें। यहाँ, इसका आशय यह निकलता है कि ग्रामीण आँचल में पशुपालक इन वनस्पतियों के सरंक्षण का भी ध्यान रखते हैं। अतः यह कहने में भी अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए कि संरक्षण में औषधीय पौधों का विशेष महत्त्व मुख्य रूप से सांस्कृतिक, आजीविका या आर्थिक योगदान से उत्पन्न हुआ है जो वे बहुत से परिवारों के जीवनयापन का आधार हैं।
बढ़ती खाद्यान्न आपूर्ति की माँग को पूरा करने में कृषकों एवं कृषि वैज्ञानिकों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिससे आज भारत देश खाद्यान्न सुरक्षा की उपलब्धता हासिल कर चुका है। इसी के साथ आज हम न केवल खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर हुए हैं बल्कि कीटनाशक, खरपतवार नाशक
जैसे रसायनों के अत्याधिक के उपयोग के कारण खाद्यान्नों में इनके अवशेष मौजूद होने से हमारी आहार श्रृंखला भी दूषित हो गई है। अत्याधिक रसायनों के आहार श्रृंखला में प्रवेश करने से कैंसर जैसे घातक रोगों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। खरपतवार मुख्य फसल में प्रतिस्पर्धा करते हैं जिससे फसल की पैदावर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अतः कृषि की अधिक पैदावार के लिए विभिन्न खरपतवारों की रोकथाम के लिए इन रसायनों का उपयोग अनिवार्य भी हो जाता है। रसायनों के उपयोग के कारण खरपतवार तो एक बार नष्ट हो जाते हैं लेकिन इनके अवशेष भूमि में समाहित होते हैं जिससे अगली बार पौधे उगने पर इन रसायनों के अवशेष भी चारे में आ जाते है। यही रसायन चारे के माध्यम से पशुओं में, और दूध, अंडा जैसे पशु उत्पादों के माध्यम से मानवीय आहार श्रृंखला में प्रवेश कर रोग पैदा कर रहे हैं।
बढ़ते रोगों में कारगर एंटीबायोटिक्स बेअसर हो रहे हैं और इन एंटीबायोटिक्स के अत्याधिक उपयोग के कारण इनके अवशेष भी मानवीय आहार श्रृंखला में प्रवेश कर रहें हैं जिनसे मनुष्यों में रोगाणुरोधी प्रतिरोध उत्पन्न होने से प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में मौतें होती हैं। अतः मनुष्यों एवं पशुओं में रोगाणुरोधी प्रतिरोध से निजात पाने के लिए पादपजनित औषधीयों का सद्दुपयोग अतिआवश्यक हो जाता है। इनमें से बहुत से पौधे खरपतवार के रूप में स्वतः ही खेतों, मेढ़ों, खाली पड़े खेतों, सड़क एवं रेल पथ किनारे, जंगलों में उगते हैं।
खरपतवार ऐसे अवांछित पौधे हैं जो मुख्य फसल में अपने-आप ही उग जाते हैं जो मुख्य फसल के साथ प्रतिस्पर्था करके उसके उत्पादन को प्रभावित करते हैं। खरपतवारों को नियन्त्रित करना बहुत ही मुश्किल कार्य तो है लेकिन इनके समाप्त होने से बहुत से जीवन रक्षक औषधीय पौधे भी नष्ट हो जाते हैं।
“जगत्येवं अनौषधम् न किंचिद्विद्यते द्रव्यं वशान्नानार्थयोगयो:” अर्थात इस ब्रह्मांड में कुछ भी ऐसा नहीं है, जो गैर-औषधीय है, जिसे कई उद्देश्यों के लिए और कई तरीकों से उपयोग नहीं किया जा सकता है। यह जीवन प्रकृति द्वारा प्रदान गये आकाश, पृथ्वी, वायु, जल पर निर्भर करता है। पौधे प्रकृति की प्राणी जगत के लिए एक ऐसी अनमोल धरोहर जिस पर सभी निर्वहन करते हैं। पेड़-पौधों में वे औषधीय गुण पाए जाते हैं जिनसे 80 प्रतिशत से भी ज्यादा जीवन रक्षक औषधीयों का निर्माण किया जाता है। अतः आज बढ़ते रोगरोधी प्रतिरोध के दौर में खतरे में पड़े पादपजगत को समझने एवं उनके सद्दुपयोग की आवश्यकता है।
औषधीय और सुगंधित पौधे फार्मास्यूटिकल्स और पारंपरिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के लिए कच्चे माल के स्रोत के रूप में विश्व स्तर पर लोकप्रियता प्राप्त कर रहे हैं। पारंपरिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में उपयोग की जाने वाली 85 प्रतिशत से अधिक हर्बल दवाएं औषधीय पौधों से प्राप्त होती हैं। ये पौधे लाखों लोगों की आजीविका सुनिश्चित करते हैं, खासकर भारतीय हिमालयी क्षेत्र में। भारत की समृद्ध चिकित्सा विरासत, दुनिया की सबसे पुरानी जीवित परंपराओं (>3000 वर्ष पुरानी) में से एक है। स्थानीय स्वास्थ्य परंपराओं के पुनरुत्थान के लिए फाउंडेशन (एफ.आर.एल.एच.टी.) के अनुसार 6500 से भी ज्यादा पौधों की प्रजातियों को भारतीय चिकित्सा के साथ-साथ लोक परंपराओं की संहिताबद्ध प्रणालियों द्वारा औषधीय उपयोग में दर्ज किया गया है।
औषधीय पौधों का महत्त्व : एक अनुमान के अनुसार दुनिया भर में 70-80% लोग अपनी प्राथमिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पारंपरिक एवं बड़े पैमाने पर हर्बल चिकित्सा पर मुख्य रूप से भरोसा करते हैं जो लगातार बढ़ रहा है। भारत में आयुर्वेदिक दवाओं के बाजार में सालाना 20% का विस्तार होने का अनुमान है जबकि चीन के सिर्फ एक प्रांत (युन्नान) से प्राप्त औषधीय पौधों की मात्रा पिछले 10 वर्षों में 10 गुना बढ़ी है (Hamilton 2004)। आज औषधीय पौधों को घरों में सजावट के लिए उगाये जाने का उत्साह भी प्रचलन में आ चुका है और एलो वेरा, तुलसी जैसे औषधीय पौधों का उपयोग घरों में होने लगा है। औषधीय पौधों का उपयोग आधुनिक चिकित्सा में नई दवाओं की खोज में मुख्य भूमिका है। बहुत सी औषधीयों का निर्माण पौधों से ही होता है। निस्संदेह पौधों की दुनिया में अभी भी कई और रहस्य छिपे हुए हैं (Mendelsohn and Balick 1995)।
पौधों की लगातार कटाई के कारण बहुत से औषधीय पौधे भी कम हो रहे हैं। अतः आज इस बात की आवश्यकता है कि औषधीय पौधों के भविष्य में भी स्थायी उपयोग के लिए उनकी आवश्यकतानुसार ही कटाई की जाए और हर संभव पौधों के सरंक्षण के लिए कार्य किया जाना चाहिए।