के.एल. दहिया
पशु चिकित्सक, पशुपालन एवं डेयरी विभाग, हरियाणा
सार
थनैला रोग दुधारू पशुओं में पाया जाने वाला ऐसा रोग है जिसमें दुग्ध ग्रन्थि में सूजन और दुग्ध उत्पादन कम होने जाने से पशुपालकों को अप्रत्याशित आर्थिक हानि होती है। उपचार के बाद भी दुधारू पशु से वांछित दुग्ध उत्पादन लेना चुनौतिपूर्ण होता है। इसके साथ ही थनैला रोग से ग्रसित पशु का दूध प्रतिजैविक दवाओं के उपयोग के कारण पीने योग्य नहीं होता है और शेष दूध को भी मानव आहार श्रृंखला से बाहर करना पड़ता है और इससे भी पशु पालकों को अतिरिक्त आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। आर्थिक हानि एवं बढ़ते प्रतिजैविक प्रतिरोध को देखते हुए एथनोवेटरीनरी मेडिसिन का उपयोग भी बढ़ रहा है। घर, कृषि और गैर कृषि योग्य भूमि में उपलब्ध सामग्री – हल्दी, घृतकुमारी, चूना, नींबू, अदरक, लहसुन, हाड़जोड़ और कढ़ीपत्ता का उपयोग दुधारू पशुओं में थनैला रोग के उपचार में मितव्ययी एवं प्रभावी एथनोवेटरीनरी मेडिसिन के रूप में किया जा सकता है।
प्रमुख शब्द: दुधारू पशु, थनैला रोग, आर्थिक हानि, प्रतिजैविक प्रतिरोध, एथनोवेटरीनरी मेडिसिन।
थनैला-रोग-में-एथनोवेटरीनरी-मेडिसिन-का-मितव्ययी-एवं-प्रभावी-अनुप्रयोग