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पर्यायवरण एवं मानव हितैषी फसल अवशेषों का औद्योगिक एवं भू-उर्वरकता प्रबंधन

के.एल. दहिया1, आदित्य2 एवं जे.एन. भाटिया3

1पशु चिकित्सक, राजकीय पशु हस्पताल, हमीदपुर (कुरूक्षेत्र) हरियाणा

2स्नातकोतर छात्र (पादप रोग), बागवानी एवं वानिकी महाविद्यालय नेरी, हमीरपुर (हिमाचल प्रदेश)

3सेवानिवृत प्रधान वैज्ञानिक (पादप रोग), कृषि विज्ञान केन्द्र, कुरूक्षेत्र, हरियाणा

फसल कटाई की बात चाहे हाथ से हो या आधुनिक औद्योगिक क्रांन्ति के दौर में कंबाईन हारवेस्टर से हो, अनभिज्ञता या मजबूरी वश, फसल अवशेषों को जलाने की परंपरा तो रही है। लेकिन इस मशीनीयुग में इसने गति अवश्य पकड़ी है जो थमने या कम होने का नाम नहीं ले रही है। फसलोपरांत किसान खेत को जल्दी से जल्दी कम समय में फसल अवशेषों का समाधान करके अगली फसल की बिजाई में लगा हुआ है जिसे वह इससे होने वाले नुकसान का ज्ञान होते हुए भी जलाकर आसानी से हल कर लेता है। हेल्थ इफेक्ट इंस्टिट्यूट के अनुसार वैश्विक पर्यायवरण प्रदूषण को असामयिक मौतों का पांचवां सबसे बड़ा कारण पाया गया है। वर्ष 2017 के आंकड़ों के अनुसार वायु प्रदूषण से विश्वभर के कुल 49 लाख मृतकों की संख्या में से भारत में 12 लाख व्यक्ति मृत होना पाया गया है।

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