के.एल. दहिया1, आदित्य2 एवं जे.एन. भाटिया3
1पशु चिकित्सक, राजकीय पशु हस्पताल, हमीदपुर (कुरूक्षेत्र) हरियाणा
2स्नातकोतर छात्र (पादप रोग), बागवानी एवं वानिकी महाविद्यालय नेरी, हमीरपुर (हिमाचल प्रदेश)
3सेवानिवृत प्रधान वैज्ञानिक (पादप रोग), कृषि विज्ञान केन्द्र, कुरूक्षेत्र, हरियाणा
उचित प्रबंधन न होने के कारण किसान को अगली फसल की बिजाई हेतु खेत को तैयार करने के लिए फसल अवशेषों को जलाना ही पड़ता है। औद्योगीकरण किसी भी राष्ट्र की उन्नति का द्योतक है और यही कारण है कि खेती ने भी गति हासिल की है लेकिन इसी के साथ-साथ फसल अवशेषों/बायोमास जलाने की प्रवृति ने भी गति पायी है। इसी औद्योगीकरण के साथ फसल अवशेषों/बायोमास का समुचित प्रबंधन भी आवश्यक है और जिसे किया भी जा सकता है।
यह तो स्पष्ट है कि फसल अवशेष अपशिष्ट नहीं बल्कि उपयोगिता से भरपूर अवशेष हैं जिनका सद्दुपयोग मानव जीवन, पर्यायवरण के सृजनात्मक कार्यों के लिए किया जा सकता है। फसल अवशेषों को भूमि में मिलाने से जहां एक ओर भूमि की उर्वतकता में बढ़ोतरी होती है तो वहीं दूसरी ओर आज के इस परिवर्तनकाल में जलाए जा रहे फसल अवशेषों को उचित प्रबंधन से खेत में मिलाने से लेकर इनको बेचकर किसान धनोपार्जन कर अतिरिक्त आमदनी कर सकता है। फसल अवशेषों अर्थात बायोमास को अग्नि की भेंट न चढ़ाकर मानवीय हित में उपयोग करना सर्वोपरि होगा।
फसल-अवशेष-न-जलाने-के-लाभ-अतिरिक्त-धनोपार्जन