Home / Animal Husbandry / भारत के डेयरी व्यवसाय में मादा लिंग वर्गीकृत वीर्य के उपयोग से प्रजनन क्रान्ति

भारत के डेयरी व्यवसाय में मादा लिंग वर्गीकृत वीर्य के उपयोग से प्रजनन क्रान्ति

के.एल. दहिया1, एवं जसवीर सिंह पंवार2

1पशु चिकित्सक, 2उप मण्डल अधिकारी, पशुपालन एवं डेयरी विभाग,कुरूक्षेत्र, हरियाणा।

डेयरी पशुओं की लाभप्रदता आनुवंशिक रूप से उच्च उत्पादक मादा बछड़ियों के उत्पादन पर निर्भर करती है। कृत्रिम गर्भाधान उच्च आनुवंशिक क्षमता वाले पशुधन प्रदान करने वाली चल रही तकनीकों का परिणाम है। लिंग वर्गीकृत वीर्य तकनीक पशुधन में गर्भाधान की कला में अचूक पहलुओं को प्रदान करती है। विश्वभर में, डेयरी क्षेत्र में वरदान साबित होने वाले पशुओं में लिंग वर्गीकृत वीर्य का उपयोग हो रहा है। 21वीं सदी में, अभी भी भारत आमजन के लिए पूर्ण दुग्ध आपूर्ति बल्कि परित्यक्त पशुओं खासकर नरों की बढ़ती संख्या से भी जूझ रहा है। हालाँकि, लिंग वर्गीकृत वीर्य तकनीक विदेशी मूल की है, लेकिन आयात करने के साथ-साथ भारत ने अपने मूल्यवान पशुधन के लिए मादा लिंग वर्गीकृत वीर्य उत्पादन की शुरुआत भी कर दी है। हालांकि, हम लिंग वर्गीकृत वीर्य के उपयोग में शुरुआती दौर में हैं, लेकिन केवल यही एक ऐसी आधुनिक तकनीक है जो भारतीय डेयरी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए आशातीत है जिससे न केवल लाभहीन नर पशुओं की बढ़ती संख्या को नियंत्रित किया जा सकता है, बल्कि यह पर्याप्त मात्रा में मादा पशुओं की संख्या बढ़ने से हर भारतीय की दुग्ध आपूर्ति और स्वरोजगार को बढ़ाने में भी सक्षम होगी।

भारत-के-डेयरी-व्यवसाय-में-मादा-लिंग-वर्गीकृत-वीर्य-के-उपयोग-से-प्रजनन-क्रान्ति

+4-04 ratings

About admin

Check Also

बोरोन – महत्वपूर्ण आहारीय सूक्ष्म खनिज तत्व

के.एल. दहिया1, यशवन्त सिंह2 एवं शुभम नरवाल3 1पशु चिकित्सक, पशुपालन एवं डेयरी विभाग, हरियाणा; email: …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *