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भैंस पालन में बाधक कारक और उनका निवारण

के.एल. दहिया1, जसवीर सिंह पंवारएवं प्रेम सिंह3

1पशु चिकित्सक, 2उपमण्डल अधिकारी, 3उपनिदेशक, पशुपालन एवं डेयरी विभाग, हरियाणा

भारत एक कृषि प्रधान राष्ट्र है जिसका पशुपालन एक अभिन्न अंग है। हालांकि, भारत मंर गायों की संख्या अधिक है फिर भी अधिकांश राज्यों खासतौर से हरियाणा राज्य में भैंस के दूध के सेवन को अधिक पसंद किया जाता है। वर्ष 2019-20 में भारतीय डेयरी उद्योग के 198.4 मिलियन टन (GOI 2020) कुल दुग्ध उत्पादन में 49 प्रतिशत योगदान भैंसों का रहा है (ET 2021)। डेयरी व्यवसाय की सफलता डेयरी पशुओं की उत्पादकता और कुशल प्रजनन क्षमता पर निर्भर करती है। हालांकि, पिछले एक दशक में भैंसों की दुग्ध उत्पादन क्षमता में कुछ बढ़ोतरी हुई है लेकिन उनकी उत्पादन और प्रजनन स्थिति आदर्श स्तर से काफी कम है जो पशुपालकों के साथ-साथ पशुपालन विभाग के लिए भी एक बहुत ही गंभीर आर्थिक समस्या है। ऐसे परिदृश्य में, पशुपालकों का पशुपालन से संबंधित ज्ञान और प्रबंधन के तरीकों में सुधार उच्च उत्पादन और प्रजनन क्षमता प्राप्त करने में मदद कर सकता है।

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