Home / Animal Husbandry / रोमंथी पशुओं में चिचड़ियों का प्रकोप एवं उनसे होने वाले रोग एवं नियंत्रण

रोमंथी पशुओं में चिचड़ियों का प्रकोप एवं उनसे होने वाले रोग एवं नियंत्रण

के.एल. दहिया1, संदीप गुलिया1 एवं प्रदीप कुमार2

1पशु चिकित्सक, पशुपालन एवं डेयरी विभाग, कुरूक्षेत्र, हरियाणा

2छात्र, बी.वी.एससी. एण्ड ए.एच. (इंटर्नी) आई.आई.वी.ई.आर. रोहतक, हरियाणा।

बाह्य परजीवियों में चिचड़ियाँ, रोमंथी पशुओं जैसे कि गाय, भैंस, भेड़, बकरी इत्यादि में सबसे अधिक हानि पहुंचाती हैं। एक चिचड़ी दिन में 0.5 से 1.5 मि.ली. खून चूस लेती है। चिचड़ियों के कारण पशुओं में एनाप्लाजमोसिस, बबेसियोसिस, थिलेरियोसिस, एहरलिचियोसिस इत्यादि घातक रोग फैलते हैं। चिचड़ियों की रोकथाम के लिए अंग्रेजी एवं देशी औषधीयों का इस्तेमाल किया जाता है। यदि चिचड़ियों की रोकथाम समय पर नहीं होती है तो पशु की मृत्यु भी हो जाती है और पशुपालकों को आर्थिक हानि झेलनी पड़ती है। इसलिए पशु चिकित्सक की सलाहानुसार इनका समय पर उपचार करना ही पशुओं एवं पशुपालकों के हित में है।

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